बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- 'त्रिमुनि' किसे कहते हैं? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
त्रिमुनि
पाणिनि, कात्यायन और पतञ्जलि आदि आचार्यों को त्रिमुनि कहते हैं।
त्रिमुनि का संक्षिप्त परिचय
1. आचार्य पाणिनि - आचार्य पाणिनी के पिता का नाम पाणि था तथा माता का नाम दाक्षी एवं गुरु का नाम उपवर्षाचार्य था। इनके गाँव का नाम शालातुरी था अतएव इन्हें 'शालातुरीय' भी कहा जाता है जो कि अटक के समीप है। इन्होने पाटलिपुत्र में अध्ययन किया पाणिनि ने अध्यनावस्था में ही अपनी घोर तपस्या से आशुतोष भगवान् शंङ्कर को प्रसन्न करके उनके उपदेश और आदेश से गुरु के आश्रम में ही अष्टाध्यायी, सूत्रपाठ, गणपाठ, धातुपाठ, लिङ्गानुशासन आदि की रचना की थी।
अष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार चरण हैं। प्रत्येक चरण के सूत्रों की संख्या परस्पर भिन्न है। सम्पूर्ण अष्टाध्यायी में लगभग 4000 सूत्र हैं।
व्याकरणीय प्रक्रिया की दृष्टि से 'अष्टाध्यायी' मे तीन विभाग किये जा सकते हैं -
1. वाक्यों से पदों का संकलन 1 से 2 तक।
2. पदों का प्रकृति प्रत्यय विभाग 3 से 4 तक।
3. प्रकृति प्रत्ययों के साथ आदेश आगम आदि का संयोजन कर परिनिहित पदों की निष्पत्ति 6 से तक।
विद्वानों में इनके काल के विषय मतभेद है। श्री युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार पाणिनी का समय 2800 ई पूर्व होगा। गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी- 1200 ई. पूर्व इनका यह तर्क भी है कि पाणिनी, कात्यायन और पतञ्जलि इनमें से प्रत्येक के मध्य 500 वर्ष का अन्तर होना चाहिए। किन्तु आधुनिक विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि पाणिनि का समय 600 ई पूर्व के आस-पास होना चाहिए।
2. कात्यायन आचार्य - संस्कृत व्याकरण में पाणिनि के बाद का महत्वपूर्ण स्थान है 'कात्यायन शब्द वस्तुत गोत्र प्रत्ययान्त है। इन्होंने वार्तिक लिखे, इसी कारण उन्हें वर्तिकार कहा जाता है। कात्यायन दाक्षिणात्यये, श्री युधिष्ठिर मीमासक के अनुसार कात्यायन का अभिप्राय वररुचि कात्यायन से है वार्तिक के अतिरिक्त कात्यायन की अन्य रचनाये है
1. स्वर्गारोहण काव्य
2. कात्यायनस्मृति
3. उलयसारिक भाग
4. आज श्लोक।
इनके स्वर्गारोहण नामक काव्य की प्रशंसा अनेक ग्रन्थों में की गयी है। अधिकर विद्वान इन्हें ई पूर्व पाँचवी शताब्दी में होना मानते हैं।
3. आचार्य पतञ्जलि - त्रिमुनियों में पतञ्जलि का तीसरा स्थान है। यह गोणिका के पुत्र थे। यह गोर्नद (गोण्डा) के निवासी थे। इन्हें शेषनाग का अवतार माना जाता है भोजराज की प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार योग सूत्र प्रणेता पतञ्जलि, व्याकरण भाष्यकार प्रणेता पतञ्जलि तथा चरक संहिता के रचयिता पतञ्जलि तीनो एक ही व्यक्ति थे।
उन्होने शंका समाधान की शैली को अपनाते हुए अनेक घरेलू दृष्टान्तो द्वारा अपने विषय का प्रतिपादन बडी सुगमता से किया है। उनकी भाषा लम्बे-लम्बे समासों से रहित. छोटे-छोटे वाक्यों से युक्त अत्यन्त सरल व सरस है। कुछ 200 ई पूर्व मानते है। युधिष्ठिर मीमांसक उनका समय कम से कम 1200 ई. पूर्व मानते हैं।
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- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य-कला की समीक्षा कीजिए।
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